الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 2604 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

و ﴿إِنَّ اللّٰهَ ثٰالِثُ ثَلاٰثَةٍ﴾ [المائدة:73]

(وصل في فصل صوم المسافر و المريض شهر رمضان)

فمن قائل إنهما إن صاماه وقع و أجزأهما و من قائل إنه لا يجزيهما و أن الواجب عليهما عدة من أيام أخر و الذي أذهب إليه أنهما إن صاماه فإن ذلك لا يجزيهما و أن الواجب عليهما أيام أخر غير أني أفرق بين المريض و المسافر إذا أوقعا الصوم في هذه الحالة في شهر رمضان فأما المريض فيكون الصوم له نفلا و هو عمل بر و ليس بواجب عليه و لو أوجبه على نفسه فإنه لا يجب عليه و أما المسافر لا يكون صومه في السفر في شهر رمضان و لا في غيره عمل بر و إذا لم يكن عمل بر كان كمن لم يعمل شيئا و هو أدنى درجاته أو يكون على ضد البر و نقيضه و هو الفجور و لا أقول بذلك إلا أني أنفي عنه إن يكون في عمل بر في ذلك الفعل في تلك الحال و اللّٰه أعلم

(الاعتبار)

السالك هو المسافر في المقامات بالأسماء الإلهية فلا يحكم عليه الاسم الإلهي رمضان بالصوم الواجب و لا غير الواجب و لهذا «قال صلى اللّٰه عليه و سلم ليس من البر» «الصيام في السفر» و اسم رمضان يطلبه بتنفيذ الحكم فيه إلى انقضاء شهر سلطانه و السفر يحكم عليه بالانتقال الذي هو عدم الثبوت على الحال الواحدة فبطل حكم الاسم الإلهي رمضان في حق المسافر الصائم و من قال إنه يجزيه جعل سفره في قطع أيام الشهر و جعل الحكم فيه الاسم رمضان فجمع بين السفر و الصوم و أما حكم انتقاله المسمى سفرا فإنه ينتقل من صوم إلى فطر و من فطر إلى صوم و حكم رمضان لا يفارقه و لهذا شرع صيامه و قيامه ثم جواز الوصال فيه أيضا مع انتقاله من ليل إلى نهار و من نهار إلى ليل و حكم رمضان منسحب عليه و لهذا أجزأ المسافر صوم رمضان

[المرض يضاد الصحة و المطلوب من الصوم الصحة]



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!