الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

«ذكره الترمذي عن أنس بن مالك قال قال رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم إن الصدقة تطفئ غضب الرب و تدفع عن ميتة السوء» و هو حديث حسن غريب فهذا من أثر الصدقة الدفع و إطفاء نار الغضب فإن اللّٰه يغضب يوم القيامة غضبا لم يغضب قبله مثله و لن يغضب بعده مثله على الوجه الذي يليق بجلاله فإن الغضب الذي خاطبنا به معلوم بلا شك و لكن نسبته إلى اللّٰه مجهولة لا إن الغضب مجهول أو يحمل على ما ينتجه في الغاضب أو يحمل على معنى آخر لا نعلمه نحن إذ لو كان ذلك لخوطبنا بما لا نفهم فلا يكون له أثر فينا و لا يكون موعظة فإن المقصود الإفهام بما نعلم و لكن إنما جهلنا النسبة خاصة لجهلنا بالمنسوب إليه لا بالمنسوب فاعلم ذلك

[ما جرى لبعض شيوخ ابن عربى بالمغرب الأقصى]

و لقد جرى لبعض شيوخنا من أهل الموازنة بالمغرب الأقصى أن السلطان رفع إليه في حقه أمور يجب قتله بها فأمر بإحضاره مقيدا و ينادي في الناس أن يحضروا بأجمعهم حتى يسألهم عنه و كان الناس فيه على كلمة واحدة في قتله و القول بما يوجب ذلك و زندقته فمر الشيخ في طريقه برجل يبيع خبزا فقال له أقرضني نصف قرصة فأقرضه فتصدق بها على شخص عابر ثم حمل و أجلس في ذلك الجمع الأعظم و الحاكم قد عزم عليه إن شهد فيه الناس بما ذكر عنه أنه يقتله شر قتلة و كان الحاكم من أبغض الناس فيه فقال يا أهل مراكش هذا فلان ما تقولون فيه فنطق لكل بلسان واحد إنه عدل رضي فتعجب الحاكم فقال له الشيخ لا تعجب فما هي هذه المسألة بعيدة أي غضب أعظم غضبك أو غضب اللّٰه و غضب النار قال غضب اللّٰه و غضب النار قال و أي وقاية أعظم وزنا و قدرا نصف قرصة أو نصف تمرة قال نصف قرصة قال دفعت غضبك و غضب هذا الجمع بنصف رغيف لما «سمعت النبي صلى اللّٰه عليه و سلم يقول اتقوا النار و لو بشق تمرة» و



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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