الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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(وفق مخطوطة قونية)

﴿وَ مَنْ فِي الْأَرْضِ﴾ [المائدة:17] و هم الأسفلون عالم الأجساد الذين قاموا بالنشأة العنصرية طوعا للأرواح من حيث علمهم و مقامهم و للأجسام من حيث ذواتهم و أعيانهم و كرها في الأرواح من حيث ذواتهم و في الأجسام من حيث رياستهم و تقدمهم على أبناء جنسهم

[الإنسان الكامل بشر ملكى و ملك بشرى]

و هذا سجود إخبار فتعين على العبد أن يصدق اللّٰه في خبره عمن ذكر فإنه من أهل الأرض بجسده و من أهل السموات بعقله فهو الملك البشري و البشر الملكي فيسجد طائعا لربه و كرها من تقييده بجهة خاصة لا يقتضيها علمه و إن كان ساجدا في نفس الأمر سجودا ذاتيا و إن لم يشعر بذلك فيوقعها عبادة فإن ذلك أنجى له

[امتداد الظلال في الغدو و الآصال]

و ذكر الغدو و الآصال لامتداد الظلال في هذه الأوقات فجعل امتدادها سجودا فهي في الغدو تتقلص رجوعا إلى أصلها الذي منه انبعثت و خوفا على نفسها من الاحتراق فكأنها نقتصر على ذاتها و في الآصال تمتد و تطول بالزيادات من إظهار نعم اللّٰه التي أسبغها عليها و الغدو و الآصال من الأوقات المنهي عن الصلاة فيها فأخرج حكم السجود في هذه الأوقات عن حكم النافلة و جعل حكمه حكم الفرائض أو المقضي من النوافل فتعين على التالي في هذه الآية السجود فيجازي من باب من صدق ربه تعالى في خبره

[سجدة الاقتداء بالمهدى و سجدة التصديق بالتحقيق]

فسجدة الأعراف سجدة اقتداء بهدى الملائكة و هذه سجدة تصديق بتحقيق

(وصل السجدة الثالثة)

سجود العالم الأعلى و الأدنى في مقام الذلة و الخوف سجود هذه السجدة عند قوله ﴿وَ يَفْعَلُونَ مٰا يُؤْمَرُونَ﴾ [النحل:50] فذكر الملائكة و الظلال و سجدوا في الأعراف سجود اختيار لما يقتضيه جلال اللّٰه و هنا أثنى اللّٰه عزَّ وجلَّ عليهم بأنهم



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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