الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 1900 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

(وصل في اعتبار ذلك)

لما كان من شرطها ما زاد على الواحد و أنها لا تصح بوجود الواحد فاعلم إن العقل قد علم إن لله أحدية ذاتية لا نسبة بينها و بين طلب الممكنات و قد ذكرناها و العاقل يعلمها فمن المحال أن يعقل العقل وجود العالم من هذه الأحدية فوجب عليه بصلاة الجمعة أن يرجع إلى النظر فيما يطلبه الممكن من وجود من له هذه الأحدية فنظر فيه من كونه إلها يطلب المألوه فهذه معرفة أخرى لا تصح إلا بالجماعة و هو تركيب الأدلة و ترتيبها فوجبت صلاة الجمعة على العقل الموصوف به العاقل و لما كانت المرأة ناقصة عقل و دين فالعقل الذي نقص منها هو عقل هذه الأحدية الذاتية فوجبت الجمعة على الرجل و هو الجمع بين العلم بتلك لاحدية و بين العلم بكونه إلها و نقص عقل المرأة عن علم تلك الأحدية فلم يجب عليها أن تجمع بينها و بين العلم بالله من كونه إلها

[الإنسان مجبور في اختياره]

و أما العبد الذي يسقط عنه وجوب الجمعة عند من يقول به و هو العبد المستحضر لجبر اللّٰه له في اختياره فإن الحقيقة تعطي أن العبد مجبور في اختياره فلما لم يتمكن له أن يجمع بين الحرية و العبودة لم تجب عليه الجمعة و كل من ذكرناه و نذكر أنه لا تجب عليه الجمعة أنه إذا حضرها صلاها كذلك إذا حضرت مواطن الاعتبارات المانعة للمذكورين من الوجوب أنها لا تجب عليه فإن فنى عنها بحال يخالفها وجبت الجمعة أي وجب عليه علم ما لم يكن يجب عليه علمه كمريم و آسية اللتين حصل لهما درجة الكمال فتعين عليهما علم الأحدية الذاتية و علم الأحدية الإلهية التي هي أحدية الكثرة

[حكم الأسباب و تجريد التوحيد]

و أما المريض و هو الذي لا يقول بالأسباب و لا يعلم حكمتها فلم يحصل له مقام الصحة حيث فإنه من العلم بالله قدر ما تعطيه حكم لأسباب و من لم يعط حاله هذا العلم و يقدح في تجريده و يخاف عليه لم يجب عليه أن يجمع بين لعلم بحكم الأسباب و بين العلم بتجريد التوحيد عنها



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!