الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

«قال عليه السلام ما كان اللّٰه لينهاكم عن الربا و يأخذه منكم» و ما من وصف وصف الحق به نفسه إلا و قد ندبنا إلى الاتصاف به و هذا معنى التخلق و الاقتداء و الائتمام و هذه الإمامة عينها فالإمام على الحقيقة هو اللّٰه تعالى و المأموم المخلوقون فلا يخلو الإمام أن ينظر نفسه واحدا من حيث أحديته و هو ما يختص به و يتميز عن كل من سواه مع الحق أو ينظر نفسه مع الحق من حيث شفعيته أو ينظر مع الحق من حيث فرديته و هو الثلاثة أعني ثالث اثنين أو ينظر نفسه من حيث إنه لم يكمل كما كمل غيره أو ينظر نفسه مع الحق من كونه مائلا إلى طبيعته و هو الصبي من صبا إذا مال أو ينظر نفسه مع الحق من كونه مائلا إلى طبيعته لا من حيث عقله فيكون بمنزلة المرأة فلا يخلو من أن يستحضر عقله مع طبيعته و الحق تعالى في هذه الأحوال كلها إمام فاليمين للقوة و كلتا يديه يمين للقربة و إسقاط الحول و القوة و الخلف للاقتداء و الاتباع فانظر أيها المصلي بأي حال حضرت في صلاتك مما ذكرناه فقم به في المقام الذي بيناه من الإمام تكن قد أتيت بالصلاة المشروعة و لكن مشهودك الحق و إمامك من حيث ما وصفه الشارع لا من حيث ما دل عليه دليل العقل حتى تكون ذا دين في عقلك و عقدك عملك و إن لم تفعل انتقص من عبادتك على قدر ما أدخلت فيها من عقلك من حيث فكرك و نظرك

(فصل بل وصل في الصفوف وصل فيمن صلى خلف الصف وحده)

[تسوية الصفوف من الوجهة الشرعية]

أجمع العلماء على إن الصف الأول مرغب فيه و كذلك التراص و تسوية الصف إلا من شذ في ذلك فقال من قدر على الصف الأول و لم يصل فيه بطلت صلاته و كذلك التراص و تسوية الصفوف إذا لم يوجد بطلت الصلاة و لما ثبت الأمر بذلك حمله بعض الناس على الندب و حمله بعض على الوجوب و هو الذي ذكرناه من أنه تبطل الصلاة بعدم هذه الصفة و الذي أقول به إن الصلاة صحيحة و هم عصاة أما الصف الأول



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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