الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
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فقالت طائفة أفقههم لا أقرؤهم فهذه مسألة خلاف بين أصحاب هذا القول و بين رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم فإني سألت القائلين بهذا المذهب هل بلغكم هذا الحديث فاعترفوا فقالوا رويناه و علمناه و بقول رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم أقول و لا حجة للقائلين بخلاف ما قاله و لا سيما «رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم يقول في هذا الحديث فإن كانوا في القراءة سواء فأعلمهم بالسنة ففرق بين الفقيه و القارئ و أعطى الإمامة للقارئ ما لم يتساويا في القراءة فإن تساويا لم يكن أحدهما أولى بالإمامة من الآخر فوجب تقديم العالم الأعلم بالسنة و هو الأفقه ثم قال عليه السلام فإن كانوا في العلم بالسنة سواء فأقدمهم هجرة فإن كانوا في الهجرة سواء فأقدمهم إسلاما و لا يؤم الرجل في سلطانه و لا يقعد في بيته على تكرمته إلا بإذنه» و هو حديث متفق على صحته و به قال أبو حنيفة و هو الصحيح الذي يعول عليه و أما تأويل المخالف للنص بأن الأقرأ كان في ذلك الزمان الأفقه فقد رد هذا التأويل قوله صلى اللّٰه عليه و سلم فأعلمهم بالسنة و اعلم أن كلام اللّٰه لا ينبغي أن يقدم عليه شيء أصلا بوجه من الوجوه فإن الخاص إن تقدمه من هو دونه فليس بخاص و أهل القرآن هم أهل اللّٰه و خاصته و هم الذين يقرءون حروفه من عجم و عرب و قد صحت لهم الأهلية الإلهية و الخصوصية فإذا انضاف إلى ذلك المعرفة بمعانيه فهو فضل في الأهلية و الخصوصية لا من حيث القرآن بل من حيث العلم بمعانيه فإن انضاف إلى ذينك إلى حفظه و العلم بمعانيه العمل به فنور على نور على نور فالقارئ مالك البستان و العالم كالعارف بأنواع فواكه البستان و تطعيمه و منافع فواكهه و العامل كالآكل من البستان فمن حفظ القرآن و علمه و عمل به كان كصاحب البستان علم ما في بستانه و ما يصلحه و ما يفسده و أكل منه و مثل العالم العامل الذي لا يحفظ القرآن كمثل العالم بأنواع الفواكه و تطعيماتها و غراستها و الآكل الفاكهة من بستان غيره و مثل العامل كمثل الآكل من بستان غيره فصاحب البستان أفضل الجماعة الذين لا بستان لهم فإن الباقي يفتقرون إليه



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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