الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
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يعني في الصلاة فناب العبد هنا مناب الحق و هذا من الاسم الظاهر فكان الحق ظهر بصورة هذا القائل سمع اللّٰه لمن حمده و كذلك قوله تعالى لنبيه محمد صلى اللّٰه عليه و سلم في حق الأعرابي ﴿فَأَجِرْهُ حَتّٰى يَسْمَعَ كَلاٰمَ اللّٰهِ﴾ [التوبة:6] و هو ما سمع إلا الأصوات و الحروف من فم النبي صلى اللّٰه عليه و سلم و قال اللّٰه إن ذلك كلامي و أضافه إلى نفسه فكان الحق ظهر في عالم الشهادة بصورة التالي لكلامه فافهم و جعل عالم الغيب و هو عالم العقل و هو بمنزلة صلاة العشاء و صلاة الليل من مغيب الشفق إلى طلوع الفجر فيناجي المصلي ربه في تلك الصلاة بما يعطيه عالم الغيب و العقل و الفكر من الأدلة و البراهين عليه سبحانه و تعالى و هو خصوص دلالة لخصوص معرفة يعرفها أهل الليل و هي صلاة المحبين أهل الأسرار و غوامض العلوم المكتنفين بالحجب فيعطيهم من العلوم ما يليق بهذا الوقت و في هذا العالم و هو وقت معارج الأنبياء و الرسل و الأرواح البشرية لرؤية الآيات الإلهية المثالية و التقريب الروحاني و هو وقت نزول الحق من مقام الاستواء إلى السماء الأقرب إلينا للمستغفرين و التائبين و السائلين و الداعين فهو وقت شريف و من صلى هذه الصلاة في جماعة فكأنما قام نصف ليله و في هذا الحديث رائحة لمن يقول إن آخر وقتها إلى نصف الليل و جعل سبحانه عالم التخيل و البرزخ الذي هو تنزل المعاني في الصور الحسية فليست من عالم الغيب لما لبسته من الصور الحسية و ليست من عالم الشهادة لأنها معاني مجردة و أن ظهورها بتلك الصور أمر عارض عرض للمدرك لها لا للمعنى في نفسه كالعلم في صورة للبن و الدين في صورة القيد و الايمان في صورة العروة و هو من أوقات الصلوات وقت المغرب و وقت صلاة الصبح فإنهما وقتان ما هما من الليل و لا من النهار فهما برزخان بينهما من الطرفين لكون زمان الليل و النهار دوريا و لهذا قال تعالى



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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