الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

فأما آخر الوقت الموسع فهو آخر أحكام الاسم الإلهي المخصوص بذلك الوقت و هو الاسم الظاهر كما إن أول الزوال حكم الاسم الإلهي الأول في الظهور الخاص بالعبادة المشروعة إلى أن يكون ظل كل شيء مثله و هو آخر الوقت كذلك حكم الاسم الإلهي إذا قام به هذا العبد في عبادته الخاصة به في هذا الوقت و استوفاه بحيث أن يكون إذا قابلة به كان مثله أي لم يبق في الاسم الإلهي حكم يختص به بهذا الوقت إلا و أثره ظاهر في هذا العبد فقد انقضى حكم هذا الاسم الإلهي في هذا العبد فخرج وقت الظهر و دخل وقت العصر و هو حكم اسم آخر بين الاسمين فرقان متوهم لا ينقسم معقول غير موجود و هو برزخ بينهما «قال رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم في الحديث الثابت عنه لا يخرج وقت صلاة حتى يدخل وقت الأخرى» يعني في الأربع الصلوات لدليل آخر فإنه إذا خرج وقت الصبح لم يدخل وقت الظهر حتى تزول الشمس بخلاف الظهر و العصر و المغرب و العشاء و الصبح فاعلم ذلك

[أرباع اليوم من الزمان]

فإن اليوم أربع و عشرون ساعة و هو أربعة أرباع كل ربع ست ساعات فمن طلوع الشمس إلى الظهر ربع اليوم ست ساعات و ليس بمحل لصلاة مفروضة بحكم التعيين و إنما قلنا بحكم التعيين من أجل الناسي و النائم فإن الوقت ما عين إيقاع الصلاة في ذلك الوقت و إنما عينه للناسي تذكره و للنائم تيقظه شرعا فسواء كان في ذلك الوقت أو في غيره فلهذا حررنا القول في ذلك و قلبا بحكم التعيين فإن مذهبي في كل ما أورده إني لا أقصد لفظة بعينها دون غيرها مما يدل على معناها إلا لمعنى و لا أزيد حرفا إلا لمعنى فما في كلامي بالنظر إلى قصدي حشو و إن تخيله الناظر فالغلط عنده في قصدي لا عندي و كان من زوال الشمس إلى طلوعها من اليوم الثاني وقتا مستصحبا لصلوات معينة مفروضة فيها متى وقعت وقعت في وقتها المعين لها

[أرباع الإنسان من الأكوان]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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