الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

[العارف هو صاحب الوقت]

فالعارف الذي هو على صلاته دائم و في مناجاته بين يدي ربه قائم في حركاته و سكناته فما عنده وقت معين و لا غير معين بل هو صاحب الوقت و من ليس له هذا المشهد فهو بحسب ما يذكره ربه من الحضور معه غير أن العارف الدائم الحضور إذا لم يفرق بين الأوقات بما يجده من المزيد و الفضل بين ما هو مفروض من ذلك الحضور و بين ما تطوع به من نفسه فهو ناقص المقام كامل الحال لاستصحابه الحضور الدائم فإن الحضور من الأحوال لا الحضور من وجه كذا فإن الحضور من وجه كذا للكمل من الرجال فالأول من أهل الحضور لا فرق عنده بين الوجوه لأنه مستغرق في الحال كاللذة المجهولة عند الإنسان التي لا يعرف سابها و الثاني من أهل الحضور و هو الكامل الدائم الحضور بحكم لوجوه كالواجد للذة بما هي لذة فهو ملتذ دائما و بما هي لذة عن طعم علم أو طعم جماع أو طعم شيء ملائم للمزاج يعلم الذائق ذلك ما بينهن من التمييز و الفرقان فإن أسماء الحق تعالى تختلف على قلوب الأولياء بفنون المعارف مع الآنات و الأنفاس فيجد في كل نفس و زمان علما لم يكن عنده بربه من حيث ما يعطيه ذلك النفس و الزمان من تجلى ذلك الاسم الخاص به

[أوقات العارفين في صلواتهم المعنوية]

و لما قسمنا الأوقات إلى مخلص و مشترك فاعلم أن الوقت في هذا الطريق هو ما أنت به في حالك أي شيء كنت به من حسن و سيئ و معرفة و جهل فلا يرتبط و كذلك الأوقات الزمانية بحسب ما يحدث اللّٰه فيها في حق كل شخص فالمخلص من الأوقات كل اسم إذا ورد عليك لم يقع في حكمه اشتراك و المشترك كل اسم له وجهان فصاعدا فالأول كالحي فإنه مخلص للحياة و كذلك العالم مخلص للعلم و الثاني الذي هو المشترك نظير الوقت المشترك كالاسم الحكيم فإن له وجها إلى العالم و وجها إلى المدبر فإن للاسم الحكيم حكمين حكما على مواضع الأمور و حكم وضعها في مواضعها بالفعل فكم من عالم لا يضع الشيء في موضعه و كم واضع للأشياء في مواضعها بحكم الاتفاق لا عن علم فالحكيم هو العالم بمواضع الأمور و وضعها في أماكنها على بصيرة فمن كان وقته الحكمة كان في الوقت المشترك و من كان في اسم لا يدل إلا على أمر واحد كالقادر و أمثاله كان في الوقت المخلص فهذه أوقات العارفين في صلواتهم المعنوية على مثال أوقاتهم الظاهرة في صلواتهم البدنية

(فصل في وقت صلاة الظهر)

[الصلاة مفروضة في وقت معين]



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