الفتوحات المكية

رقم السفر من 37 : [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 1586 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

[الأزل للخالق و الزمان للمخلوق]

و بعد أن علمت ما معنى الزمان و الوقت فاعتبره أي جزه و اقطعه إلى معرفة الأزل الذي تنعت به خالقك و تجعله له كالزمان لك و إذا كان الزمان لك بهذه النسبة أمرا نسبيا لا حقيقة له في عينه و أنت محدود مخلوق فالأزل أبعد و أبعد أن يكون حد الوجود اللّٰه في قولك و قول من قال أن اللّٰه تكلم في الأزل و قال في الأزل و قدر في أزله كذا و كذا و يتوهم بالوهم فيه أنه امتداد كما تتوهم امتداد الزمان في حقك فهذا من حكم الوهم لا من حكم العقل و النظر الصحيح فإن مدلول لفظة الأزل إنما هو عبارة عن نفي الأولية لله تعالى أي لا أول لوجوده بل هو عين الأول سبحانه لا بأولية تحكم عليه فيكون تحت إحاطتها و معلولا عنها و فرق بين ما يعطيه و همك و عقلك و أكثر من هذا البسط في هذه المسألة ما يكون

[الحق يقدر الأشياء أزلا و لا يوجدها أزلا]

فالحق سبحانه يقدر الأشياء أزلا و لا يقال يوجد أزلا فإنه محال من وجهين فإن كونه موجدا إنما هو بأن يوجد و لا يوجد ما هو موجود و إنما يوجد ما لم يكن موصوفا لنفسه بالوجود و هو المعدوم فمحال أن يتصف الموجود الذي كان معدوما بأنه موجود أزلا فإنه موجود عن موجود أوجده و الأزل عبارة من نفي الأولية عن الموصوف به فمن المحال أن يكون العالم أزلي الوجود و وجوده مستفاد من موجدة و هو اللّٰه تعالى و الوجه الآخر من المحال الذي يقال في العالم أنه موجود أزلا لأن معقول الأزل نفي الأولية و الحق هو الموصوف به فيستحيل وصف وجود العالم بالأزل لأنه راجع إلى قولك العالم مستفيد الوجود من اللّٰه غير مستفيد الوجود من اللّٰه لأن الأولية قد انتفت عنه بكونه أزلا فيستحيل على العالم أن يتصف بهذا الوصف السلبي الذي هو الأزل و لا يستحيل الموصوف به و هو الحق أن يقال خلق الخلق أزلا بمعنى قدر فإن التقدير راجع إلى العلم و إنما يستحيل إذا كان خلق بمعنى أوجد فإن الفعل لا يكون أزلا

[ثبوت التقدير في الأزل و في الزمان]



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


يرجى ملاحظة أن بعض المحتويات تتم ترجمتها بشكل شبه تلقائي!