الفتوحات المكية

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[نجاسة الإنسان إذا كثرت منه الغفلة]

فالذي أورث العبد الدعوى هو العزة التي فطر الإنسان عليها حيث كان مجموع العالم و مضاهيا لجميع الموجودات على الإطلاق فلما غاب عن العناية الإلهية به في ذلك و الموت الأصلي الذي نبه اللّٰه عليه في قوله ﴿وَ كُنْتُمْ أَمْوٰاتاً﴾ [البقرة:28] و قوله تعالى ﴿وَ قَدْ خَلَقْتُكَ مِنْ قَبْلُ وَ لَمْ تَكُ شَيْئاً﴾ [مريم:9] و قوله ﴿لَمْ يَكُنْ شَيْئاً مَذْكُوراً﴾ [الانسان:1] لذلك اتفق العلماء على نجاسته إذا تفاحش أي كثرت منه الغفلة عن هذا المقام فإن لم يتفاحش لم يقع عليه الاتفاق في هذا الحكم

[الإنسان الكامل نائب الحق في الأرض و معلم الملك في السماء]

الرابع بول ابن آدم و رجيعه اعتباره اعلم أنه من شرفت مرتبته و علت منزلته كبرت صغيرته و من كان وضيع المنزلة خسيس المرتبة صغرت كبيرته و الإنسان شريف المنزلة رفيع المرتبة نائب الحق و معلم الملائكة فينبغي إن يطهر من عاشره و يقدس من خالطه فلما غفل عن حقيقته اشتغل بطبيعته فصاحبته الأشياء الطاهرة من المشارب و المطاعم أخذ طيبها بطبيعته لا بحقيقته و أخرج خبيثها بطبيعته لا بحقيقته فكان طيبها نجسا و هو الدم و كان خبيثها نجسا و هو البول و الرجيع و كان الأولى أن لا يكسبه خبث الروائح فإنه من عالم الأنفاس فكانت نجاسته من حيث طبيعته و كذلك هي من كل حيوان غير أن حقائق الحيوانات و أرواحها ليست في علو الشرف و المنزلة مثل حقيقة الإنسان فكانت زلته كبيرة فاتفقوا بلا خلاف على نجاسته من مثل هذا و اختلفوا في سائر أبوال الحيوانات و رجيعها و إن كان الكل من الطبيعة فمن راعى الطبيعة قال بنجاسة الكل و من راعى منزلة الشرف و الانحطاط قال بنجاسة بول الإنسان و رجيعه و لم يعف عنه لعظم منزلته و عفا عمن هو دونه من الحيوانات فقد أبنت لك عن سبب الاتفاق و الاختلاف و الحمد لله



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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