الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

فأما حكم الباطن فيه فاعلم إن سبب هذا الخلاف هو أنه لا يخلو أن ينطلق على ذلك الماء اسم الماء المطلق أو لا ينطلق فمن رأى أنه ينطلق قال بجواز الطهارة به و من رأى أنه قد أثر في إطلاقه استعماله لم يجز ذلك أو كرهه على قدر ما يقوى عنده و أما من قال بنجاسته فقول غير معتبر و إن كان القائل به من المعتبرين و هو أبو يوسف

[رد التوحيد إلى الذات بعد استعماله في أحدية الأفعال]

فاعلم إن العلم بتوحيد اللّٰه هو الطهور على الإطلاق فإذا استعملته في أحدية الأفعال ثم بعد هذا الاستعمال رددته إلى توحيد الذات اختلف العلماء بالله بمثل هذا الاختلاف في الماء المستعمل فمن العارفين من قال إن هذا التوحيد لا يقبله الحق من حيث ذاته فلا يستعمل بعد ذلك في العلم بالذات و من العارفين من قال يقبله لأنا ما أثبتنا عينا زائدة و النسب ليست بأمر وجودي فتؤثر في توحيد الذات فبقي العلم بالتوحيد على أصله من الطهارة

[التوحيد المطلق لا ينبغي إلا لله]

و أما من قال بأنه نجس فإن التوحيد المطلق لا ينبغي إلا لله تعالى فإذا استعملت هذا التوحيد في أحدية كل أحد التي بها يقع له التمييز عن غيره فقد صار لها حكم الكون الممكن فهذا معنى النجاسة فلا ينبغي أن ينسب إلى اللّٰه مثل هذا التوحيد لأن تمييزه في أحديته عن خلقه ليس عن اشتراك كما تتميز الممكنات بعضها عن بعض بخصوص وصفها و هي أحديتها

(باب في طهارة أسئار المسلمين و بهيمة الأنعام)

id="p2708" class=" G" /> اتفق العلماء بالشريعة على طهارة أسئار المسلمين و بهيمة الأنعام و اختلفوا فيما عدا ذلك فمن قائل بطهارة كل حيوان و من قائل استثني و اختلف أهل الاستثناء خلافا كثيرا

(وصل حكم الباطن في ذلك)

[الإيمان حياة و الحياة عين الطهارة في الحي]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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