الفتوحات المكية

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و أنه سبحانه كما علم فاحكم و أراد فخصص و قدر فأوجد كذلك سمع و رأى ما تحرك أو سكن أو نطق في الورى من العالم الأسفل و الأعلى لا يحجب سمعه البعد فهو القريب و لا يحجب بصره القرب فهو البعيد يسمع كلام النفس في النفس و صوت المماسة الخفية عند اللمس و يرى السواد في الظلماء و الماء في الماء لا يحجبه الامتزاج و لا الظلمات و لا النور و هو السميع البصير تكلم سبحانه لا عن صمت متقدم و لا سكوت متوهم بكلام قديم أزلي كسائر صفاته من علمه و إرادته و قدرته كلم به موسى عليه السّلام سماه التنزيل و الزبور و التوراة و الإنجيل من غير حروف و لا أصوات و لا نغم و لا لغات بل هو خالق الأصوات و الحروف و اللغات فكلامه سبحانه من غير لهاة و لا لسان كما إن سمعه من غير أصمخة و لا آذان كما إن بصره من غير حدقة و لا أجفان كما إن إرادته في غير قلب و لا جنان كما إن علمه من غير اضطرار و لا نظر في برهان كما إن حياته من غير بخار تجويف قلب حدث عن امتزاج الأركان كما إن ذاته لا تقبل الزيادة و النقصان فسبحانه سبحانه من بعيد دان عظيم السلطان عميم الإحسان جسيم الامتنان كل ما سواه فهو عن جوده فائض و فضله و عدله الباسط له و القابض أكمل صنع العالم و أبدعه حين أوجده و اخترعه لا شريك له في ملكه و لا مدبر معه في ملكه إن أنعم فنعم فذلك فضله و إن أبلى فعذب فذلك عدله لم يتصرف في ملك غيره فينسب إلى الجور و الحيف و لا يتوجه عليه لسواه حكم فيتصف بالجزع لذلك و الخوف كل ما سواه تحت سلطان قهره و متصرف عن إرادته و أمره فهو الملهم نفوس المكلفين التقوى و الفجور و هو المتجاوز عن سيئات من شاء و الآخذ بها من شاء هنا و في يوم النشور لا يحكم عدله في فضله و لا فضله في عدله أخرج العالم قبضتين و أوجد لهم منزلتين فقال هؤلاء للجنة و لا أبالي و هؤلاء للنار و لا أبالي و لم يعترض عليه معترض هناك إذ لا موجود كان ثم سواه فالكل تحت تصريف أسمائه فقبضة تحت أسماء بلائه و قبضة تحت أسماء آلائه و لو أراد سبحانه أن يكون العالم كله سعيدا لكان أو شقيا لما كان من ذلك في شأن لكنه سبحانه لم يرد فكان كما أراد فمنهم الشقي و السعيد هنا و في يوم المعاد فلا سبيل إلى تبديل ما حكم عليه القديم و قد قال تعالى في الصلاة هي خمس و هي خمسون ﴿مٰا يُبَدَّلُ الْقَوْلُ لَدَيَّ وَ مٰا أَنَا بِظَلاّٰمٍ لِلْعَبِيدِ﴾ [ق:29] لتصرفي في ملكي و إنفاذ مشيئتي في ملكي و ذلك لحقيقة عميت عنها الأبصار و البصائر و لم تعثر عليها الأفكار و لا الضمائر إلا بوهب إلهي و جود رحماني



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