الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

فقد علمنا إن العقل ما عنده شيء من حيث نفسه و أن الذي يكتسبه من العلوم إنما هو من كونه عنده صفة القبول فإذا كان بهذه المثابة فقبوله من ربه لما يخبر به عن نفسه تعالى أولى من قبوله من فكره و قد عرف أن فكره مقلد لخياله و أن خياله مقلد لحواسه و مع تقليده فهو غير قوي على إمساك ما عنده ما لم تساعده على ذلك القوة الحافظة و المذكرة و مع هذه المعرفة بأن القوي لا تتعدى خلقها و ما تعطيه حقيقتها و أنه بالنظر إلى ذاته لا علم عنده إلا الضروريات التي فطر عليها لا يقبل قول من يقول له إن ثم قوة أخرى وراءك تعطيك خلاف ما أعطتك القوة المفكرة نالها أهل اللّٰه من الملائكة و الأنبياء و الأولياء و نطقت بها الكتب المنزلة فاقبل منها هذه الأخبار الإلهية فتقليد الحق أولى و قد رأيت عقول الأنبياء على كثرتهم و الأولياء قد قبلتها و آمنت بها و صدقتها و رأت أن تقليدها ربها في معرفة نفسه أولى من تقليد أفكارها فما لك أيها العاقل المنكر لها لا تقبلها ممن جاء بها و لا سيما عقول تقول إنها في محل الايمان بالله و رسله و كتبه

[الرياضيات و الخلوات و المجاهدات و أثرها في المعرفة الحقيقية]

و لما رأت عقول أهل الايمان بالله تعالى إن اللّٰه قد طلب منها أن تعرفه بعد أن عرفته بأدلتها النظرية علمت إن ثم علما آخر بالله لا تصل إليه من طريق الفكر فاستعملت الرياضات و الخلوات و المجاهدات و قطع العلائق و الانفراد و الجلوس مع اللّٰه بتفريغ المحل و تقديس القلب عن شوائب الأفكار إذ كان متعلق الأفكار الأكوان و اتخذت هذه الطريقة من الأنبياء و الرسل و سمعت أن الحق جل جلاله ينزل إلى عباده و يستعطفهم فعلمت إن الطريق إليه من جهته أقرب إليه من الطريق من فكرها و لا سيما أهل الايمان و قد سمعت «قوله تعالى من أتاني يسعى أتيته هرولة»



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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