الفتوحات المكية

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(وفق مخطوطة قونية)

«إلي منها و ارض بقسم اللّٰه فإنه من خرج من الدنيا و هو راض بقسم اللّٰه خرج و اللّٰه عنه راض و من رضي اللّٰه عنه فمصيره إلى الجنة يا أبا هريرة مر بالمعروف و إنه عن المنكر قال كيف آمر بالمعروف و أنه عن المنكر قال علم الناس الخير و لقنهم إياه و إذا رأيت من يعمل بمعاصي اللّٰه تعالى لا تخاف سوطه و سيفه فلا يحل أن تجاوزه حتى تقول له اتق اللّٰه يا أبا هريرة تعلم القرآن و علمه الناس حتى يجيئك الموت و أنت كذلك و إن كنت كذلك جاءت الملائكة إلى قبرك و صلوا عليك و استغفروا لك إلى يوم القيامة كما يحج المؤمنون إلى بيت اللّٰه عزَّ وجلَّ يا أبا هريرة ألق المسلمين بطلاقة وجهك و مصافحة أيديهم بالسلام إن استطعت أن تكون كذلك حيث كنت فإن الملائكة معك سوى حفظتك يستغفرون لك و يصلون عليك و اعلم أنه من خرج من الدنيا و الملائكة يستغفرون له غفر اللّٰه له يا أبا هريرة إن أحببت أن يغشى لك الثناء الحسن في الدنيا و الآخرة كف لسانك عن غيبة الناس فإنه من لم يغتب الناس نصره اللّٰه في الدنيا و الآخرة أما نصرته في الدنيا فليس أحد يتناوله إلا كانت الملائكة تكذبهم عنه و أما نصرته في الآخرة فعفو اللّٰه عن قبيح ما صنع و يتقبل منه أحسن ما عمل يا أبا هريرة اغد في سبيل اللّٰه يبسط اللّٰه لك الرزق يا أبا هريرة صل رحمك يأتك الرزق من حيث لا تحتسب و احجج البيت يغفر اللّٰه لك ذنوبك التي وافيت بها البلد الحرام يا أبا هريرة أعتق الرقاب يعتق اللّٰه بكل عضو منه عضوا منك و فيه أضعاف ذلك من الدرجات يا أبا هريرة أشبع الجائع يكن لك مثل أجر حسناته و حسنات عقبه و ليس عليك من سيئاتهم شيء يا أبا هريرة لا تحقرن من المعروف شيئا تعمله و لو أن تفرغ من دلوك في إناء المستقى فإنه من خصال البر و البر كله عظيم و صغيره ثوابه الجنة يا أبا هريرة مر أهلك بالصلاة فإن اللّٰه تعالى يأتيك بالرزق من حيث لا تحتسب و لا يكن للشيطان في بيتك مدخلا و لا مسلكا يا أبا هريرة إذا عطس أخوك المسلم فشمته فإنه يكتب لك به عشرون حسنة فقلت يا رسول اللّٰه بأبي أنت و أمي كيف ذاك قال إنك حين تقول له يرحمك اللّٰه يكتب لك عشر حسنات و حين يقول لك يهديك اللّٰه يكتب لك عشر حسنات يا أبا هريرة كن مستغفرا للمسلمين و المسلمات و المؤمنين و المؤمنات كانوا كلهم شفعاء لك و كان لك مثل أجورهم من غير أن ينقص من أجورهم شيء يا أبا هريرة إن كنت تريد أن تكون عند اللّٰه صديقا فآمن بجميع رسل اللّٰه و أنبياء اللّٰه و كتبه يا أبا هريرة إن كنت تريد أن تحرم على النار جسدك فقل إذا أصبحت و إذا أمسيت لا إله إلا اللّٰه وحده لا شريك له لا إله إلا اللّٰه له الملك و له الحمد لا إله إلا اللّٰه و اللّٰه أكبر لا إله إلا اللّٰه و لا حول و لا قوة إلا بالله يا أبا هريرة لا يحل لك أن تدخل على من هو في سكرات الموت و لو كان نبيا حتى تلقنه شهادة أن لا إله إلا اللّٰه يا أبا هريرة من لقن مريضا في سكرات الموت شهادة أن لا إله إلا اللّٰه وحده لا شريك له فقالها كان له مثل جميع حسناته فإن لم يقلها فله عتق رقبة بقوله لا إله إلا اللّٰه يا أبا هريرة لقن الموتى شهادة أن لا إله إلا اللّٰه رب اغفر لي فإنها تهدم الذنوب هدما فقلت يا رسول اللّٰه هذا للموتى فكيف للأحياء فقال هي أهدم و أهدم قال فعدده رسول اللّٰه ﷺ على أكثر من عشرين مرة يقول رسول اللّٰه ﷺ أهدم و أهدم يا أبا هريرة فإن استطعت أن لا تمطر السماء مطرا إلا صليت عنده ركعتين فإنك تعطي حسنات بعدد كل قطرة نزلت تلك الساعة و عدد كل ورقة أنبت ذلك المطر يا أبا هريرة تصدق بالماء فإنه لا يتوضأ أحد إلا كان لك مثل حسناته من غير أن ينقص من حسناته شيء يا أبا هريرة أ ما علمت أن رجلا غفر له احتش حشيشا فجاءت بهيمة فأكلته يا أبا هريرة قل للناس حسنا تفلح يوم القيامة يا أبا هريرة عد على المسكين كافرا كان أو مسلما فإن كان عدت على المسكين الكافر رحمك اللّٰه و أما ثوابك إن عدت على المسكين المسلم فلا أحسن صفته يا أبا هريرة إذا كنت في عيال أبيك أو أمك أو ولدك فلا يحل لك أن تتصدق منه إلا بإذنه يا أبا هريرة لا يحل لك من مال امرأتك شيء إلا شيء تعطيك من غير أن تسألها و ذلك هو قول اللّٰه عز و جل»



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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