الفتوحات المكية

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﴿هٰذٰا فِرٰاقُ بَيْنِي وَ بَيْنِكَ﴾ [الكهف:78]

«وصل» [في العلم النبوي و العلم النظري]

و لا يحجبنك أيها الناظر في هذا الصنف من العلم الذي هو العلم النبوي الموروث منهم صلوات اللّٰه عليهم إذا وقفت على مسألة من مسائلهم قد ذكرها فيلسوف أو متكلم أو صاحب نظر في أي علم كان فتقول في هذا القائل الذي هو الصوفي المحقق إنه فيلسوف لكون الفيلسوف ذكر تلك المسألة و قال بها و اعتقدها و إنه نقلها منهم أو إنه لا دين له فإن الفيلسوف قد قال بها و لا دين له فلا تفعل يا أخي فهذا القول قول من لا تحصيل له إذ الفيلسوف ليس كل علمه باطلا فعسى تكون تلك المسألة فيما عنده من الحق و لا سيما إن وجدنا الرسول عليه السّلام قد قال بها و لا سيما فيما وضعوه من الحكم و التبري من الشهوات و مكايد النفوس و ما تنطوي عليه من سوء الضمائر فإن كنا لا نعرف الحقائق ينبغي لنا أن نثبت قول الفيلسوف في هذه المسألة المعينة و إنها حق فإن الرسول صلى اللّٰه عليه و سلم قد قال بها أو الصاحب أو مالكا أو الشافعي أو سفيان الثوري و أما قولك إن قلت سمعها من فيلسوف أو طالعها في كتبهم فإنك ربما تقع في الكذب و الجهل أما الكذب فقولك سمعها أو طالعها و أنت لم تشاهد ذلك منه و أما الجهل فكونك لا تفرق بين الحق في تلك المسألة و الباطل و أما قولك إن الفيلسوف لا دين له فلا يدل كونه لا دين له على إن كل ما عنده باطل و هذا مدرك بأول العقل عند كل عاقل فقد خرجت باعتراضك على الصوفي في مثل هذه المسألة عن العلم و الصدق و الدين و انخرطت في سلك أهل الجهل و الكذب و البهتان و نقص العقل و الدين و فساد النظر و الانحراف أ رأيت لو أتاك بها رؤيا رآها هل كنت إلا عابرها و تطلب على معانيها فكذلك خذ ما أتاك به هذا الصوفي و اهتد على نفسك قليلا و فرغ لما أتاك به محلك حتى يبرز لك معناها أحسن من أن تقول يوم القيامة



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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