الفتوحات المكية

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﴿كُلَّ يَوْمٍ هُوَ فِي شَأْنٍ﴾ [الرحمن:29] فلنفسه لما يسبح بحمده و خلقه لعبادته و في شأن أهله لما تمس حاجتهم إليه و لما تولد عنهم لذلك بعينه فتدبر ما أنعم اللّٰه عزَّ وجلَّ به عليك

[إثبات العلة نحلة]

و من ذلك إثبات العلة نحلة من الباب 433 قال العلة و إن اقتضت المعلول لذاتها فلها التقدم بالرتبة و إن ساوقها المعلول في الوجود فما ساوقها في الوجوب الذاتي النفسي فإذا عقلت هذا فلا تبال إلا أن يمنعك الأدب و قال ما هرب من هرب إلى القول بالشرط إلا من الخوف من مساوقة الوجود و ما علم إن الموجود له حكم الوجود سواء تأخر أو تقدم بخلاف الوجوب النفسي فإنه له و ليس لك فكان اللّٰه فيه و لا شيء معه فيه و لا يكون بخلاف الوجود فلو قلت كان اللّٰه و لا شيء معه لم تقل و هو الآن و هو و لا شيء لوجود الأشياء و في الوجوب الذاتي تقول في كل حال كان اللّٰه و لا شيء و هو الآن و لا شيء فقد علمت الفارق فقل شرطا أو علة إلا أن تمنع شرعا

[حب الجزاء عن حب الاعتناء]

و من ذلك حب الجزاء عن حب الاعتناء من الباب 434 قال حب المخلوق خالقه محصور بين حب اللّٰه الذي أوجب له أن يحبه و حب جزاء محبته فهو محفوظ عليه وجوده و قال علامة المحبة اتباع المحبوب فيما أمر و نهى في المنشط و المكره و السراء و الضراء و قال دليل المحب الحمد لله المنعم المفضل و دليل المحبوب الحمد لله على كل حال «كان رسول اللّٰه ﷺ يقول في السراء الحمد لله المنعم المفضل و يقول في الضراء الحمد لله على كل حال هذا هو الثابت عنه ذكره مسلم في الصحيح» و قال حب الاعتناء بالجزاف عطاء بغير حساب و لا هنداز و حب الجزاء بالميزان ﴿مَنْ جٰاءَ بِالْحَسَنَةِ فَلَهُ عَشْرُ أَمْثٰالِهٰا وَ مَنْ جٰاءَ بِالسَّيِّئَةِ﴾ [الأنعام:160] فله مثلها و قال الحب خلوص الولاء فهو للأولياء من العموم و الخصوص و قال حب الاعتناء و منه و حب الجزاء عنه فإن حب الجزاء عرفناه بالتعريف و حب الاعتناء عرفناه بالوجود و التصريف



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