Mekkeli Fetihler: futuhat makkiyah

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

﴿خَيْرٌ لَكُمْ إِنْ كُنْتُمْ مُؤْمِنِينَ﴾ [الأعراف:85] أي مصدقين بأني خلقت ﴿لَكُمْ مٰا فِي الْأَرْضِ جَمِيعاً﴾ [البقرة:29] فإن صدقتموني في هذا صدقتموني فيما أبقيت لكم من ذلكم و إن فصلتم بين الأمرين فآمنتم ببعض و كفرتم ببعض لم تكونوا مؤمنين ثم إنكم لن تنالوا من ذلك مع جمعكم إياه و انكبابكم عليه إلا ما قدرته لكم و خسرتموني و سواء عليكم تعرضتم لتحصيل ما ضمنته لكم أو أعرضتم عنه لا بد لي أن أوصله إليكم فإني أطلبكم به كما أطلبكم بآجالكم و ما ذلك من كرامتكم علي و لا من إهانتكم فإني أرزق البر و الفاجر و المكلف و غير المكلف و أميت البر و الفاجر و المكلف و غير المكلف و إنما عنايتي إن أوصل إليك من البقية لا من غيرها في مثل هذا تظهر عنايتي بالشخص الموصل إليه ذلك فإنه لن تموت نفس حتى تستكمل رزقها كما أ لن تموت نفس حتى يأتيها أجلها المسمى و سواء كان الرزق قليلا أو كثيرا و ليس رزقك إلا ما تقوم به نشأتك و تدوم به قوتك و حياتك ليس رزقك ما جمعت و ادخرت فقد يكون ذلك لك و لغيرك لكن حسابه عليك إذا كنت جامعه و كاسبه فلا تكسب إلا ما يقوتك و يقوت من كلفك اللّٰه السعي عليه لا غير و ما زاد على ذلك مما فتحت به عليك فأوصله إنعاما منك إلى من شئت ممن تعلم منه أنه يستعمله في طاعتي فإن جهلت فأوصله فإنك لن تخيب من فائدته من كونك منعما بما سميته ملكا لك فأنت فيه كرب النعمة و ليس غيري فأنت نائبي و النائب بصورة من استخلفه و قدر زقت النبات و الحيوان و الطائع و العاصي فكن أنت كذلك و تحرى الطائع جهد استطاعتك فإن ذلك أوفر لحظك و أعلى و في حقك أولى و أثنى

[إن اللّٰه خلق للعبد ما تنعم به و تحيى به]



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