Mekkeli Fetihler: futuhat makkiyah

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(وفق مخطوطة قونية)

و أثبت لهم الحق الرجولة في هذا الموطن و من شهد له الحق بأمر فهو على حق في دعواه إذا ادعاه و من أثبت الأسباب بإثبات الحق و ركن إليها ركون الطبع و اضطرب عند فقدها في نفس الاعتماد على اللّٰه فذلك من متوسط الرجال و إذا وقع الاضطراب في النفس فإن أحس بالفقد و اضطرب المزاج فذلك من خصائص الرجال الأكابر و إن لم يضطرب المزاج و لم يحس بالفقد فذلك حال الاعتماد على اللّٰه و هو مقام المتوسطين أصحاب الأحوال و من هذا المنزل «قيل للنبي صلى اللّٰه عليه و سلم في فتح مكة لما وقف بين يديه رجل ممن كان النبي صلى اللّٰه عليه و سلم يريد قتله فلما قضى حاجته منه و انصرف قال النبي صلى اللّٰه عليه و سلم لم لم تقتلوه حين وقف بين يدي فقال له أصحابه هلا أومأت إلينا بطرفك فقال صلى اللّٰه عليه و سلم ما كان لنبي أن تكون له خائنة عين» و هي حالة لا يسلم منها و غاية إن يسلم منها من سلم في الشر و أما في الخير فإنهم ربما اتخذوها في الخير طريقا محمودة فيومئ الكبير في حق الحاضر إلى بعض من يمتثل أمره أن يجيء إليه بخلعة أو بمال يهبه لذلك الحاضر يكون ذلك إيماء بالعين لا تصريحا باللفظ من غير شعور من يومي في حقه بذلك الخير و لا يقع مثل هذا و إن كان خيرا من نبي و سببه أن لا تعتاده النفس فربما تستعمله في الشر لاستصحابها إياه في الخير إذ كانت النفس من طبعها أن تسترقها العادة و إنما سميت خائنة عين لأن الإفصاح عما في النفس إنما هو لصفة الكلام ليس هو من صفة العين و إن كان في قوة العين الإفصاح بما في النفس بالإشارة و لكن إنما لها النظر و الذي عندها من صفة الكلام إنما هو أمانة بيدها للكلام فإذا تصرفت في تلك الأمانة بالإيماء و الإشارة لمن تومئ إليه في أمر ما فقد خانت الكلام فيما أمنها عليه من ذلك فلهذا سميت



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