Mekkeli Fetihler: futuhat makkiyah

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

فإذا وليت أمرا *** فلتقم فيه بحق

إنما الوالي بحق *** هو مقعد صدق

فتراه بين حق *** حاكما و بين خلق

رتبة يسمو إليها *** كل ذي عقل و نطق

هو للفناء مفن *** و هو للبقاء مبق

فإذا أفنى فناء *** جاء حكم الضد يبق

قال اللّٰه تعالى لخليله إبراهيم ع ﴿إِنِّي جٰاعِلُكَ لِلنّٰاسِ إِمٰاماً﴾ [البقرة:124] ابتداء منه من غير طلب من إبراهيم عليه السّلام ليكون معنا مسددا و علمنا أنه ليس بظالم قطعا لأن الإمامة عهد من اللّٰه و قال إبراهيم لربه تعالى ﴿وَ مِنْ ذُرِّيَّتِي﴾ [البقرة:124] فقال ﴿لاٰ يَنٰالُ عَهْدِي الظّٰالِمِينَ﴾ [البقرة:124] فأمرنا الحق أن نتبع ملة إبراهيم : لأن العصمة مقرونة بها فإن رسول اللّٰه ﷺ قد نبه على أنه من طلب الإمارة وكل إليها و من أعطيها من غير مسألة أعين عليها و بعث اللّٰه ملكا يسدده و الملك معصوم من الخطاء في الأحكام المشروعة في عالم التكليف فكان الخليل حنيفا أي مائلا إلى الحق مسلما منقادا إليه في كل أمر فكان يوالي الخير حيثما كان قالوا لي الكامل من والى بين الأسماء الإلهية فيحكم بينها بالحق كما يحكم الوالي الكامل الولاية من البشر بين ﴿بِالْمَلَإِ الْأَعْلىٰ إِذْ يَخْتَصِمُونَ﴾ [ص:69] و لهذا أمروا بالسجود لآدم عليه السّلام فإن الاعتراض خصام في المعنى و الخصم قوي فلما أعطى الإمامة و الخلافة و أسجدت له الملائكة و عوقب من أساء الأدب عليه و تكبر عليه بنشأته و أبان عن رتبة نفسه بأنها عين نشأته فجهل نفسه أولا فكان بغيره أجهل و لا شك أن هذا المقام يعطي الزهو و الافتخار لعلو المرتبة و الزهو و الفخر داء معضل و إن كان بالله تعالى فأنزل اللّٰه لهذا الداء دواء شافيا فأمر الإمام بالسجود للكعبة فلما شرب هذا الدواء بريء من علة الزهو و علم



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