Mekkeli Fetihler: futuhat makkiyah

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(وفق مخطوطة قونية)

إن المتانة حال ليس يدريها *** إلا الذي هام وجدا في معانيها

و قوة اللّٰه أبدتها لناظرنا *** و حكمها أبدا فيمن يعانيها

إذا أشد بها ركني تكون لنا *** أولى و إن كان عيني فهو ثانيها

إن المطالع قد لاحت أهلتها *** للناظرين إليها في مبانيها

[المتين هو الذي لا يتزلزل عما يجب له الثبوت فيه]

يدعى صاحبها عبد المتين قال تعالى ﴿إِنَّ اللّٰهَ هُوَ الرَّزّٰاقُ ذُو الْقُوَّةِ الْمَتِينُ﴾ [الذاريات:58] فرفع على الصفة لقوله ذو و هو و المتين هو الذي لا يتزلزل عما يجب له الثبوت فيه لتمكنه و ثقله فنبه على العين أنها بهذه الصفة من المتانة لئلا يتخيل متخيل أو يقول قائل إن الصور لما تبدلت في التجلي و اختلفت و الأسماء الإلهية لما كثرت و تنوعت و دل كل اسم على معنى لا يكون لغيره و أعطت كل صورة أمرا لم تعطه الصورة الأخرى إن العين و المسمى تبدل لهذا التبدل فأخبر أنه من المتانة بحيث أن الأمر على ما قرر و شوهد من التحول و التبدل و العين ثابتة في مكانتها لا نقبل التغيير و أعظم ما يظهر حكم هذا في العقائد في اللّٰه لأن الإله الذي اعتقد بالدليل النظري إذا جاءت الشبهة لصاحب هذا الاعتقاد النظري إزالته فلو كانت المتانة من صفات الإله الذي جعله المعتقد في نفسه ما أثرت فيه الشبهة الواردة فأخلت المحل عنه و عاد يبحث على إله آخر يجعله فيه فليست المتانة إلا للاله القوي الحق الذي يجد في نفسه هذا الطالب الاستناد إليه و لا يدري ما هو و لمتانته لا يقوى الناظر أن ينقله إلى محل اعتقاده فمتانته حجابه فلا يعرف و الحق الذي وسعه قلب العبد هو الذي يقبل آثار الشبه فيه فقد علمت لما ذا تسمى بالمتين و هو علم غريب فبالمتانة كان الاستناد فاستند إليه كل ممكن يطلب الترجيح و العلم بهذا المستند عين نفي العلم به على علم بأنه لا يعلم لا بد من ذلك كما قال الصديق العجز عن درك الإدراك إدراك و هذا أعلى ما يوصل إليه في العلم بالله المتين فإن للمتانة درجات فقصدنا أتمها و أعلاها



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