Mekkeli Fetihler: futuhat makkiyah

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[إن كلمات اللّٰه التي لا تنفد]

اعلم أن الممكنات هي كلمات اللّٰه التي لا تنفدوا بها يظهر سلطانها الذي لا يبعد و هي مركبات لأنها أتت للافادة فصدرت عن تركيب يعبر عنه في اللسان العربي بلفظة ﴿كُنْ﴾ [البقرة:12] فلا يتكون عنه إلا مركب من روح و صورة ثم تلتحم الصور بعضها ببعض لما بينهما من المناسبات فتحدث المعاني فينا بحدوث تأليفها الوضعي و ما وقع فيها الوضع في الصور المخصوصة إلا لذاتها لا بحكم الإنفاق و لا بحكم الاختيار لأنها بأعيانها أعطت العلم الذي لا يتحول و القول الذي لا يتبدل و المشيئة الماضية فهي في الشهادة بحسب ما هي عليه في الغيب فهي في الغيب بصورة كل ما تتقلب إليه في الظاهر مما لا نهاية له في الغيب من التقليب و هو في الظاهر يبدو مع الآيات إذ لا يصح دخول ما لا يتناهى في الوجود لأن ما لا يتناهى لا ينقضي فلا يقف عند حد و المادة التي ظهرت فيها كلمات اللّٰه التي هي العالم هي نفس الرحمن و لهذا عبر عنه بالكلمات و قيل في عيسى عليه السّلام إنه كلمة اللّٰه

[الأرواح النورية و النارية و الترابية]

ثم اعلم أن اللّٰه تعالى لما أظهر من كلماته ما أظهر قدر لهم من المراتب ما قدر فمنهم الأرواح النورية و النارية و الترابية و هم على مراتب مختلفة و كلهم أوقفهم مع نفوسهم و أشهدهم إياها و احتجب لهم فيها ثم طلب منهم أن يطلبوه و نصب لهم معارج يعرجون عليها : في طلبها إياه فدخل لهم بهذه المعارج في حكم الحد و جعل لهم قلوبا يعقلون بها و لبعضهم فكرا يتفكرون به ثم جعل من معارجهم نفي المثلية عنه من جميع الوجوه ثم تشبه لهم بهم فأثبت عين ما نفى ثم نصب لهم الدلالة على صدق خبره إذا أخبرهم فتفاضلت أفهامهم لتفاضل حقائقهم في نشأتهم فكل طائفة سلكت فيه مسالك ما خرجت فيها عما هي عليه فلم يجدوا في انتهاء طلبهم إياه غير نفوسهم فمنهم من قال بأنه هو و منهم من قال بالعجز عن ذلك و قال لم يكن المطلوب منا إلا أن نعلم أنه لا يعلم فهذا معنى العجز و منهم من قال يعلم من وجه و يعجز عن العلم به من وجه و منهم من قال كل طائفة مصيبة فيما ذهبت إليه و أنه الحق سواء سعد أو شقي فإن السعادة و الشقاء من جملة النسب المضافة إلى الخلق كما نعلم أن الحق و الصدق نسبتان محمودتان و مع هذا فلها مواطن تذم فيه شرعا و عقلا فما ثم شيء لنفسه و ما ثم شيء إلا لنفسه و بالجملة فالخلق كله مرتبط بالله ارتباط ممكن بواجب سواء عدم أو وجد و سعد أو شقي و الحق من حيث أسماؤه مرتبط بالخلق فإن الأسماء الإلهية تطلب العالم طلبا ذاتيا فما في الوجود خروج عن التقييد من الطرفين فكما نحن به و له فهو بنا و لنا و إلا فليس لنا برب و لا خالق و هو ربنا و خالقنا فبنا لكونه به و لنا لكونه له إلا أن له الإمداد فينا الوجودي و لنا فيه الإمداد العلمي فتكليفه إيانا تكليف له فبنا تكلف للتكليف فما كلفنا سوانا و لكن به لا بنا فتداخلت المراتب فهو الرفيع الدرجات مع النزول الذاتي و الخلق في النزول مع العروج و الصعود الذاتي فما خرج موجود عن تأثير وجودي و عدمي و لا مؤثر في الحقيقة إلا النسب و هي أمور عدمية عليها روائح وجودية فالعدم لا يؤثر من غير أن تشم منه روائح الوجود و الوجود لا أثر له إلا بنسبة عدمية فإذا ارتبط النقيضان و هما الوجود و العدم فارتباط الموجدين أقرب فما ثم إلا ارتباط و التفاف كما نبه تعالى ﴿وَ الْتَفَّتِ السّٰاقُ بِالسّٰاقِ﴾ [القيامة:29] أي التف أمرنا بأمره و انعقد فلا ننحل عن عقده أبدا و لما تمم و هو الصادق بقوله



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