Mekkeli Fetihler: futuhat makkiyah

Volume number (out of 37): [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 6102 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

و اعلم أن الصفات التي جبل عليها الإنسان لا تتبدل فإنها ذاتية له في هذه النشأة الدنيا و المزاج الخاص من الجبن و الشح و الحسد و الحرص و النميمة و التكبر و الغلظة و طلب القهر و أمثال هذا و لما لم يتجه تبدلها بين اللّٰه لها مصارف صرفها إليها حكما مشروعا فإن صرفت إليها أحكام هذه الصفات سعدت و نالت الدرجات فجبنت عن إتيان المحارم لما تتوقعه من المضرة و شحت بدينها و حسدت منفق المال و طالب العلم و حرصت على الخير وسعت بين الناس بإيصال الخير فنمت به كما تنم الروضة بما فيها من الأزهار الطيبة الريح و تكبرت بالله على من تكبر على أمر اللّٰه و أغلظت القول و الفعل في المواطن التي تعلم أن ذلك في مرضاة اللّٰه و طلبت القهر على من ناوى الحق و قاواه فلم تزل هذه النفس عن صفاتها و صرفتها في المصارف التي يحمدها عليها ربها و ملائكته و رسله فالشرع ما جاء إلا بما يساعده الطبع فلا أدري من أين ينال الإنسان المشقة و ما حجر عليه ما يقتضيه طبعه من هذه الصفات بتبيين المصارف فما هلك الناس إلا بسلطان الأغراض فإنه الذي أدخل الألم عليهم و المكروه فلو أن الإنسان يصرف غرضه إلى ما أراده له خالقه لاستراح قيل لأبي يزيد ما تريد قال أريد أن لا أريد أي اجعلني مريد الكل ما تريد حتى لا يكون إلا ما يريد الحق سبحانه فما يريد بعباده إلا اليسر و لا يريد بهم العسر و يريد لهم الخير و ليس إليه الشر كما «ورد في الخبر الصحيح و الخير كله في يديك و الشر ليس إليك» و إن كان الكل من عند اللّٰه بحكم الأصل و لما كان خروج الإنسان عن إن يكون مريدا محالا و إنه أول ما كان يقدح ذلك في الطاعات فيفعلها من غير نية مشروعة فلا تكون طاعة و إنما طلب أبو يزيد الخروج عن الأغراض النفسية التي لا توافق مرضاة الحق عز و جل



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


Bazı içeriklerin Arapçadan Yarı Otomatik olarak çevrildiğini lütfen unutmayın!