Mekkeli Fetihler: futuhat makkiyah

Volume number (out of 37): [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17]
[18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37]

الصفحة - من السفر وفق مخطوطة قونية (المقابل في الطبعة الميمنية)

  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
futmak.com - الفتوحات المكية - الصفحة 5163 - من السفر  من مخطوطة قونية

الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

و هو عين عيسى عليه السلام و أخبر أن كلمات اللّٰه لا تنفد فمخلوقاته لا تزال توجد و لا يزال خالقا و كذلك لما رأينا في هذه الأجسام العنصرية أمورا مختلفة الصور مختلفة الأشكال مختلفة المزاج و مع هذا ما يخرجها ذلك الاختلاف عن حقيقة كونها يجمعها حد واحد و حقيقة واحدة كأشخاص الحيوان على اختلاف أنواعه و أشكاله كالطير لا يخرجه ما ظهر فيه من اختلاف المقادير و الأشكال و الألوان عن كونه طيرا فعلمنا إن هذا الاختلاف ما هو لكونه إنسانا و لا لكونه طيرا فإن الإنسانية في كل واحد واحد من أشخاصها مع ظهور الاختلاف فلا بد لذلك من حقائق أخر معقولة أوجبت لها ذلك الاختلاف فبحثنا عن ذلك في العلم الإلهي الذي هو مطلوبنا إذ كان الوجود مرتبطا به فوجدناه تعالى لا يكرر تجليا و يظهر في صورة ينكر فيها و في صورة يعرف فيها و هو اللّٰه تعالى في الصورتين الأولى و الآخرة و في كل صور التجلي فقامت صور التجلي في الألوهة مقام اختلاف أحوال صور أشخاص النوع في النوع فعلمنا أن تغير أشخاص النوع من هذه الحقيقة الإلهية فعلمنا إنا ما علمنا من الحق إلا ما أشهدنا و أن اللّٰه تجلى للنوع من حيث ما هو نوع فلم يتغير عن نوعيته كما لم يزل إلها في ألوهته ثم يظهر لذلك النوع في صور مختلفة اقتضتها ذاته تعالى فظهر في أشخاص النوع اختلاف صور على وزنها و مقدارها فلو لا أنه في استعداد هذا النوع المتغير بالشخص في الأشكال و الألوان و المقادير التي لا تخرجه عن نوعيته لما قبل هذا التغيير و لكان على صورة واحدة و إذا كان الكثيف مع كثافته مستعد القبول الصور المختلفة بصنعة الصانع فيه كالخشب و ما تصور منه بحسب ما يقوم في نفس الصانع من الصور المختلفة فاللطيف أقبل للاختلاف كالماء و الهواء فما كان ألطف كان أسرع بالذات لقبول الاختلاف فتبين لك أن اختلاف صور العالم من أعلاه لطفا إلى أسفله كثافة لا يخرج كل صورة ظهر فيها عن كونه نفس الرحمن قال تعالى ﴿وَ اللّٰهُ أَنْبَتَكُمْ مِنَ الْأَرْضِ نَبٰاتاً﴾ [نوح:17]



هذه نسخة نصية حديثة موزعة بشكل تقريبي وفق ترتيب صفحات مخطوطة قونية
  الصفحة السابقة

المحتويات

الصفحة التالية  
  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

ترقيم الصفحات موافق لمخطوطة قونية (من 37 سفر) بخط الشيخ محي الدين ابن العربي - العمل جار على إكمال هذه النسخة.
(المقابل في الطبعة الميمنية)

 
الوصول السريع إلى [الأبواب]: -
[0] [1] [2] [3] [4] [5] [6] [7] [8] [9] [10] [11] [12] [13] [14] [15] [16] [17] [18] [19] [20] [21] [22] [23] [24] [25] [26] [27] [28] [29] [30] [31] [32] [33] [34] [35] [36] [37] [38] [39] [40] [41] [42] [43] [44] [45] [46] [47] [48] [49] [50] [51] [52] [53] [54] [55] [56] [57] [58] [59] [60] [61] [62] [63] [64] [65] [66] [67] [68] [69] [70] [71] [72] [73] [74] [75] [76] [77] [78] [79] [80] [81] [82] [83] [84] [85] [86] [87] [88] [89] [90] [91] [92] [93] [94] [95] [96] [97] [98] [99] [100] [101] [102] [103] [104] [105] [106] [107] [108] [109] [110] [111] [112] [113] [114] [115] [116] [117] [118] [119] [120] [121] [122] [123] [124] [125] [126] [127] [128] [129] [130] [131] [132] [133] [134] [135] [136] [137] [138] [139] [140] [141] [142] [143] [144] [145] [146] [147] [148] [149] [150] [151] [152] [153] [154] [155] [156] [157] [158] [159] [160] [161] [162] [163] [164] [165] [166] [167] [168] [169] [170] [171] [172] [173] [174] [175] [176] [177] [178] [179] [180] [181] [182] [183] [184] [185] [186] [187] [188] [189] [190] [191] [192] [193] [194] [195] [196] [197] [198] [199] [200] [201] [202] [203] [204] [205] [206] [207] [208] [209] [210] [211] [212] [213] [214] [215] [216] [217] [218] [219] [220] [221] [222] [223] [224] [225] [226] [227] [228] [229] [230] [231] [232] [233] [234] [235] [236] [237] [238] [239] [240] [241] [242] [243] [244] [245] [246] [247] [248] [249] [250] [251] [252] [253] [254] [255] [256] [257] [258] [259] [260] [261] [262] [263] [264] [265] [266] [267] [268] [269] [270] [271] [272] [273] [274] [275] [276] [277] [278] [279] [280] [281] [282] [283] [284] [285] [286] [287] [288] [289] [290] [291] [292] [293] [294] [295] [296] [297] [298] [299] [300] [301] [302] [303] [304] [305] [306] [307] [308] [309] [310] [311] [312] [313] [314] [315] [316] [317] [318] [319] [320] [321] [322] [323] [324] [325] [326] [327] [328] [329] [330] [331] [332] [333] [334] [335] [336] [337] [338] [339] [340] [341] [342] [343] [344] [345] [346] [347] [348] [349] [350] [351] [352] [353] [354] [355] [356] [357] [358] [359] [360] [361] [362] [363] [364] [365] [366] [367] [368] [369] [370] [371] [372] [373] [374] [375] [376] [377] [378] [379] [380] [381] [382] [383] [384] [385] [386] [387] [388] [389] [390] [391] [392] [393] [394] [395] [396] [397] [398] [399] [400] [401] [402] [403] [404] [405] [406] [407] [408] [409] [410] [411] [412] [413] [414] [415] [416] [417] [418] [419] [420] [421] [422] [423] [424] [425] [426] [427] [428] [429] [430] [431] [432] [433] [434] [435] [436] [437] [438] [439] [440] [441] [442] [443] [444] [445] [446] [447] [448] [449] [450] [451] [452] [453] [454] [455] [456] [457] [458] [459] [460] [461] [462] [463] [464] [465] [466] [467] [468] [469] [470] [471] [472] [473] [474] [475] [476] [477] [478] [479] [480] [481] [482] [483] [484] [485] [486] [487] [488] [489] [490] [491] [492] [493] [494] [495] [496] [497] [498] [499] [500] [501] [502] [503] [504] [505] [506] [507] [508] [509] [510] [511] [512] [513] [514] [515] [516] [517] [518] [519] [520] [521] [522] [523] [524] [525] [526] [527] [528] [529] [530] [531] [532] [533] [534] [535] [536] [537] [538] [539] [540] [541] [542] [543] [544] [545] [546] [547] [548] [549] [550] [551] [552] [553] [554] [555] [556] [557] [558] [559] [560]


Bazı içeriklerin Arapçadan Yarı Otomatik olarak çevrildiğini lütfen unutmayın!