Mekkeli Fetihler: futuhat makkiyah

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فجاء بكاف الصفة فتخيل هذا الذي لم يصل إلى فهمه أكثر من هذا الجمال المقيد فقيده به كما قيده بالقبلة فأحبه لجماله و لا حرج عليه في ذلك فإنه أتى بأمر مشروع له على قدر وسعه و ﴿لاٰ يُكَلِّفُ اللّٰهُ نَفْساً إِلاّٰ وُسْعَهٰا﴾ [البقرة:286] و بقي علينا حبه تعالى للجمال

[إن اللّٰه يحب الجمال]

فاعلم إن العالم خلقه اللّٰه في غاية الإحكام و الإتقان كما قال الإمام أبو حامد الغزالي من أنه لم يبق في الإمكان أبدع من هذا العالم فأخبر أنه تعالى خلق آدم على صورته و الإنسان مجموع العالم و لم يكن علمه بالعالم تعالى إلا علمه بنفسه إذ لم يكن في الوجود إلا هو فلا بد أن يكون على صورته فلما أظهره في عينه كان مجلاه فما رأى فيه إلا جماله فأحب الجمال فالعالم جمال اللّٰه فهو الجميل المحب للجمال فمن أحب العالم بهذا النظر فقد أحبه بحب اللّٰه و ما أحب إلا جمال اللّٰه فإن جمال الصنعة لا يضاف إليها و إنما يضاف إلى صانعه فجمال العالم جمال اللّٰه و صورة جماله دقيق أعني جمال الأشياء و ذلك أن الصورتين في العالم و هما مثلا شخصان ممن يحبهما الطبع و هما جاريتان أو غلامان قد اشتركا في حقيقة الإنسانية فهما مثلان و كمال الصورة التي هي أصول من كمال الأعضاء و الجوارح و سلامة المجموع و الآحاد من العاهات و الآفات و يتصف أحدهما بالجمال فيحبه كل من رآه و يتصف الآخر بالقبح فيكرهه كل من رآه فما هو الجمال الذي انطلق عليه اسم الجمال حتى أحبه كل من رآه فقد وكلناك في علم ذلك إلى نفسك و نظرك فهذا إذا وقع حب الشخص من مجرد الرؤية خاصة لا بعد الصحبة و المعاشرة فدبروا نظر تعثر إن شاء اللّٰه على عين الأمر في وصف الحق نفسه بأنه جميل و بحبه للجمال مع خلقه المكروه و المضار و ما لا يلائم الطباع و لا يوافق الأغراض فهذا قد ذكرنا طرفا من الصفات التي يحب اللّٰه من اتصف بها و هي كثيرة جدا فقد نبهناك بما ذكرناه على مأخذها و كيف يتصرف الإنسان فيها فلنذكر طرفا من نعوت الحب الذي ينبغي أن يكون المحب عليها إن شاء اللّٰه و بها يسمى محبا فهي كالحدود للحب فمن ذلك أنه موصوف بأنه مقتول تألف سائر إليه بأسمائه طيار دائم السهر كامن الغم راغب في الخروج من الدنيا لي لقاء محبوبه متبرم بصحبة ما يحول بينه و بين لقاء محبوبه كثير التأوه يستريح إلى كلام محبوبه و ذكره بتلاوة ذكره موافق لمحاب محبوبه خائف من ترك الحرمة في إقامة الخدمة يستقل الكثير من نفسه في حق ربه و يستكثر القليل من حبيبه يعانق طاعة محبوبه و يجانب مخالفته خارج عن نفسه بالكلية لا يطلب الدية في قتله يصبر على الضراء التي ينفر منها الطبع لما كلفه محبوبه من تدبيره هائم القلب مؤثر محبوبه على كل مصحوب محو في إثبات قد وطأ نفسه لما يريده به محبوبه متداخل الصفات ما له نفس معه كله له يعتب نفسه بنفسه في حق محبوبه ملتذ في دهش جاوز الحدود بعد حفظها غيور على محبوبه منه يحكم حبه فيه على قدر عقله جرحه جبار لا يقبل حبه الزيادة بإحسان المحبوب و لا النقص بجفائه ناس حظه و حظ محبوبه غير مطلوب بالآداب مخلوع النعوت مجهول الأسماء كأنه سأل و ليس بسال لا يفرق بين الوصل و الهجر هيمان متيم في إدلال ذو تشويش خارج عن الوزن يقول عن نفسه إنه عين محبوبه مصطلم مجهود لا يقول لمحبوبه لم فعلت كذا أو قلت كذا مهتوك الستر سره علانية فضيحة الدهر لا يعلم الكتمان لا يعلم أنه محب كثير الشوق و لا يدري إلى من عظيم الوجد و لا يدري فيمن لا يتميز له محبوبه مسرور محزون موصوف بالضدين مقامه الخرس حاله يترجم عنه لا يحب العوض سكران لا يصحو مراقب متحر لمراضيه مؤثر في المحبوب الرحمة به و الشفقة لما يعطيه شاهد حاله ذو أشجان كلما فرغ نصب لا يعرف التعب روحه عطية و بدنه مطية لا يعلم شيئا سوى ما في نفس محبوبه قرير العين لا يتكلم إلا بكلامه هم المسمون بحملة القرآن لما كان المحبون جامعين جميع الصفات كانوا عين القرآن كما



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