Mekkeli Fetihler: futuhat makkiyah

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(وفق مخطوطة قونية)

«قال النبي ﷺ نعمت مطية المؤمن عليها يبلغ الخير و بها ينجو من الشر» فوصفها بأن حذرها على أبنائها تذكرهم بالشرور و تهرب بهم منها و تزين لهم الخير و تشوقهم إليه فهي تسافر بهم و تحملهم من موطن الشر إلى موطن الخير و ذلك لشدة مراقبتها إلى ما أنزل اللّٰه فيها من الأوامر الإلهية المسماة شرائع فتحب إن يقوم بها أبناؤها ليسعدوا فهذا ﷺ قد وصفها بأحسن الصفات و جعلها محلا للخيرات فينبغي لأهل المراقبة أن يكون بدؤهم في الدخول لاكتساب هذه الصفة أن يرقبوا أحوال أمهم لأن الطفل لا يفتح عينيه إلا على أمه فلا يبصر غيرها فيحبها طبعا و يميل إليها أكثر مما يميل إلى أبيه لأنه لا يعقل سوى من يربيه و بأفعالها ينبغي يقتدى

[لما ذا تغار الدنيا من الآخرة]

فإن قلت فلما ذا تغار من الآخرة قلنا لما كان الحكم لها و هي من الطاعة بهذه المثابة و ليس للآخرة هنا سلطان و الذي في الآخرة هو في الدنيا من اللذات و الآلام فالداران متساويتان فيصعب عليها أن يكون أبناؤها ينسبون إلى الآخرة و ما ولدتهم و لا تعبت في تربيتهم و بعد هذا كله فإن الناس نسبوا ما كانوا عليه من أحوال الشرور التي عينها الشارع إلى الدنيا و هي أحوالهم ما هي أحوال الدنيا لأن الشر هو فعل المكلف ما هو الدنيا و نسبوا ما كانوا عليه من أحوال الخير و مرضاة اللّٰه التي عينها الشارع للآخرة و هي أحوالهم ما هي أحوال الآخرة لأن الخير هو فعل المكلف ما هو الآخرة فللدنيا أجر المصيبة التي أصيبت في أولادها و من أولادها فمن عرف الدنيا بهذه المثابة فقد عرفها و من لم يعرفها بهذه المثابة و جهلها مع كونه فيها مشاهدا لأحوالها شرعا و عقلا فهو بالآخرة أجهل حيث ما ذاق لها طعما



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