Mekkeli Fetihler: futuhat makkiyah

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(وفق مخطوطة قونية)

الجواب أن اللّٰه قد نبه أن العظمة التي تلبسها العقول رداء يحجبها عن إدراك الحق عند التجلي فليست العظمة صفة للحق على التحقيق و إنما هي صفة للقلوب العارفة به فهي عليها كالرداء على لابسه و هي من خلفه تحجبها تلك العظمة عن الإدلال عليه و تورثها الإذلال بين يديه و من الدليل على أن يوصف العظيم بالعظمة أنه راجع إلى العالم به لا إليه أن المعظم إذا رآه من لا يعرفه لا يجد لذلك النظر في قلبه هيبة و لا تعظيما لجهله به و الذي يعلم مكانته و منزلته له على قلبه سلطان العلم به فيورثه ذلك العلم عظمة في قلبه فهو الموصوف بالعظمة لا العظيم

[العظمة حال للرائى لا للمرئى]

و «قد ورد خبر ذكره أبو نعيم الحافظ في دلائل النبوة أن جبريل أخذ رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم فأسرى به في شجرة فيها كوكرى طائر فقعد جبريل في الواحد و قعد رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم في الآخر فلما وصلا إلى السماء الدنيا تدلى إليهما شبه الرفرف درا و ياقوتا فأما جبريل فغشي عليه و أما محمد صلى اللّٰه عليه و سلم فبقي على حاله ما تغير عليه شيء فقال رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم فعلمت فضل جبريل علي في العلم» لأنه علم ما رأى و أنا ما علمته فالعظمة التي حصلت في قلب جبريل إنما كانت من علمه بما تدلى إليه فقلب جبريل هو الموصوف بتلك العظمة فهي حال للرائي لا للمرئي و لو كانت العظمة حالة للمرئي لعظمة كل من رآه و الأمر ليس كذلك و «قد ورد في الحديث الصحيح أن اللّٰه يتجلى يوم القيامة لهذه الأمة و فيها منافقوها فيقول أنا ربكم فيستعيذون منه و لا يجدون له تعظيما و ينكرونه لجهلهم به فإذا تجلى لهم في العلامة التي يعرفونه بها أنه ربهم حينئذ يجدون عظمته في قلوبهم و الهيبة»



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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