Mekkeli Fetihler: futuhat makkiyah

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الجواب لما كان في نفس الأمر يقتضي أن يكون مراتب المعلومات من الممكنات ثلاثا مرتبة للمعاني المجردة عن المواد التي من شأنها أن تدرك بالعقول بطريق الأدلة و البداية و مرتبة من شأنها أن تدرك بالحواس و هي المحسوسات و مرتبة من شأنها أن تدرك بالعقل أو الحواس و هي المتخيلات و هي تشكل المعاني في الصور المحسوسة تصورها القوة المصورة الخادمة للعقل يقتضي ذلك أمر يسمى الطبيعة فيما ينشأ منها من الأجسام الإنسانية و الجنية

[حضرة الخيال و توضيح أسباب السعادة على ألسنة الرسل]

فلما إن شاء اللّٰه أن يوضح للمكلفين من عباده أسباب سعادتهم على ألسنة رسله من البشر إليهم بوساطة الروح العلوي المنزل بذلك على قلوب بعض البشر المسمين رسلا و أنبياء أجرى المعاني في المخاطبات مجرى المحسوسات في الصور التي تقبل التجزي و الانقسام و القلة و الكثرة و جعل محل ذلك حضرة الخيال فحصروا المعاني في الخطاب فتلقتها بالتشبيه العقول كما تتلقى بالمحسوسات التي شبهت بها هذه المعاني التي ليس من شأنها بالنظر إلى ذاتها أن تكون متحيزة أو منقسمة أو قليلة أو كثيرة أو ذات حد و مقدار و كيف و كم و جعل لنا الدليل على قبول ما أتى به من هذا القبيل في هذه الصور ما يراه النائم في نومه من العلم في صورة اللبن فيشربه حتى يرى الري يخرج من أظفاره فقيل له ما أولته يا رسول اللّٰه يريد ما تؤول إليه صورة ما رأيت فقال العلم و معلوم أن العلم ليس بجسم يسمى لبنا و لا هو لبن و إنما هو معنى مجرد عن الصور التي من شأنها أن تدركها الحواس

[تقسيم العقول على الناس]

فكان منها ما قال الشارع في تقسيم العقول على الناس كما تقسم الحبوب فمن الناس من حصل له من العقل الممثل في الصور التي من شأنها أن تكال القفيز و القفيزين و الأكثر و الأقل و المد و المدين و الأكثر من ذلك و الأقل ليبين بهذا تفاضل الناس في العقول لأنه المشهود عندنا لأنا نرى أشخاصا كلهم يتصفون بأنهم عقلاء ذوو أحلام فمنهم من يدرك عقله غوامض الأسرار و المعاني و يحمل صورة الكلمة الواحدة من الحكيم على خمسين وجها و مائة و أكثر و أقل من المعاني الغامضة و العلوم العالية المتعلقة بالجناب الإلهي أو الروحاني أو الطبائع أو العلم الرياضي أو الميزان المنطقي و عقل شخص ينزل عن هذه الدرجة إلى ما هو أقل و آخر ينزل دون هذا الأقل و عقل آخر يعلو فوق هذا الأكبر فلما شاهدنا تفاوت العقول احتجنا أن نقسمها على الأشخاص تقسيم الذوات التي تقبل الكثرة و القلة و يسمى المعنى القابل لهذه القسمة المعنوية الممثلة العقل الأكثر أي الذي قسمت منه هذي العقول التي في العقلاء من الموجودات بحسب ما بينهم من التفاوت

[صورة تكوين العقول من العقل الأكثر]

و صورة تكوين العقول من هذا العقل الأكبر في تحقيق الأمر بطريق التمثيل و التشبيه الأقرب إلى المناسب بالسراج الأول فتوقد منه جميع الفتائل فتتعدد السرج بعدد الفتائل و تقبل الفتائل من نور ذلك السراج بحسب استعداداتها ففتيلة طبيعية في غاية النظافة صافية الدهن وافرة الجسم يكون قبولها أعظم في اتساع النور و في كمية جسم النور و أكبر من فتيلة نزلت عن هذه في الصفة من النظافة و الصفاء فكان التفاوت بين الأنوار بحسب استعدادات الفتائل و مع هذا فلم ينقص من السراج الأول شيء بل هو على كماله كما كان و كل سراج من هذه السرج يضاهيه و يقول أنا مثله و بأي شيء فضل علي و أنا يؤخذ مني كما يؤخذ منه و يصول و يقول و ما يرى فضله عليه من وجه إنه الأصل و له التقدم و الثاني إنه في غير مادة و لا واسطة بينه و بين ربه و ما عداه فلم يظهر له وجود إلا به و بالمواد التي قبلت الاشتعال منه فظهرت أعيان العقول هذا كله غاب عنها بل ما لها فيه ذوق كيف يدرك من لا وجود له إلا بين أب و أم حقيقة من كان وجوده عن غير واسطة

[العقول عاجزة عن إدراك العقل الأول و خالقه]



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