Mekkeli Fetihler: futuhat makkiyah

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

الجواب هذا سؤال اختبار إن كان السائل عالما فإنه من المعلومات ما يعلل و منها ما لا يعلل هذا في المعلومات فكيف ما لا يعلم كيف يصح أن يعلل الجهل به

[الاشتراك مع الحق في العلم بمعلوم ما لا يصح وقوعه]

و أما من يرى أن القدر معلوم لمن فوق مرتبة الرسل من الملائكة أو من شاء اللّٰه من خلقه الذي لا علم لنا بأجناس خلقه فيكون طيه حتى لا يشارك الحق في علم حقائق الأشياء من طريق الإحاطة بها إذ لو علم أي معلوم كان بطريق الإحاطة من جميع وجوهه كما يعلمه الحق لما تميز علم الحق عن علم العبد بذلك الشيء و لا يلزمنا على هذا الاستواء فيما علم منه فإن الكلام فيما علم منه على ذلك فإن العبد جاهل بكيفية تعلق العلم مطلقا بمعلومه فلا يصح أن يقع الاشتراك مع الحق في العلم بمعلوم ما و من المعلومات العلم بالعلم و ما من وجه من المعلومات إلا و للقدر فيه حكم لا يعلمه إلا اللّٰه فلو علم القدر علمت أحكامه و لو علمت أحكامه لاستقل العبد في العلم بكل شيء و ما احتاج إلى الحق في شيء و كان الغني له على الإطلاق فلما كان الأمر بعلم القدر يؤدي إلى هذا طواه اللّٰه عن عباده فلا يعلم فكل شخص في العالم على جهل من نفسه و علم فمن حيث جهله يفتقر و يسأل و يخضع و يتضرع و يعلمه بجهله يقع منه هذا الوصف هذا إذا اتفق أن يكون ممكنا العلم به و قد قررنا أنه محال لذاته كما يعلم أنه ليس للحق من الصفات النفسية سوى واحدة لأحديته و هي عين ذاته فليس له فصل مقوم يتميز به عما وقع له من الاشتراك فيه مع غيره بل له الأحدية الذاتية التي لا تعلل و لا تكون علة فهي الوجود و ما هي

[أسنى ما تمدح به الإنسان العلم بالقدر]

و من الأسباب التي لأجلها طوى علم ذلك عن الإنسان لكون ذات الإنسان تقتضي البوح به لأنه أسنى ما يمدح به الإنسان و لا سيما الرسل فحاجتهم إليه آكد من جميع الناس لأن مقام الرسالة يقتضي ذلك و ما ثم علم و لا آية أقرب دلالة على صدقهم من مثل هذا العلم



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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