Mekkeli Fetihler: futuhat makkiyah

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(وفق مخطوطة قونية)

[اعتبار القول بالقضاء و الكفارة معا]

و من قال عليه القضاء و الكفارة قال النسيان هو الترك و الصوم ترك و ترك الترك وجود نقيض الترك كما أن عدم العدم وجود و من هذه حاله فلم يقم به الترك الذي هو الصوم فما امتثل ما كلف فلا فرق بينه و بين المتعمد فوجب عليه القضاء و الكفارة و الاعتبار قد تقدم في ذلك و أنه ليس في الحديث أن ذلك الأعرابي كان ذاكرا لصومه حين جامع أهله و لا غير ذاكر و لا استفصله رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم هل كان ذاكرا لصومه أو غير ذاكر و قد اجتمعا في التعمد للجماع فوجب على الناسي كما وجب على الذاكر لصومه و لا سيما في الاعتبار فإن الطريق تقتضي المؤاخذة بالنسيان لأنه طريق الحضور فالنسيان فيه غريب

(وصل في فصل هل الكفارة مرتبة كما هي في المظاهر أو على التخيير)

فإنه قال له أعتق ثم قال له صم ثم قال له أطعم فلا يدري أ قصد عليه السلام الترتيب أم لا فقيل إنها على الترتيب أولها العتق فإن لم يجد فالصوم فإن لم يستطع فالإطعام و قيل هي على التخيير و منهم من استحب الإطعام أكثر من العتق و من الصيام و يتصور هنا ترجيح بعض هذه الأقسام على بعض بحسب حال المكلف أو مقصود الشارع

[المقصود بالحدود إنما هو الزجر عند بعضهم]

فمن رأى أنه يقصد التغليظ و إن الكفارة عقوبة فإن كان صاحب الواقعة غنيا أو ملكا خوطب بالصيام فإنه أشق عليه و أردع فإن المقصود بالحدود و العقوبات إنما هو الزجر و إن كان متوسط الحال في المال و يتضرر بالإخراج أكثر مما يشق عليه الصوم أمر بالعتق أو الإطعام و إن كان الصوم عليه أشق أمر بالصوم

[الذي ينبغي أن يقدم إنما هو رفع الحرج]

و من رأى أن الذي ينبغي أن يقدم في ذلك ما يرفع الحرج فإنه تعالى يقول



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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