Mekkeli Fetihler: futuhat makkiyah

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

أي ممنوعا يقول إن اللّٰه يعطي على الدوام و المحال تقبل على قدر حقائق استعداداتها كما تقول إن الشمس تنبسط أنوارها على الموجودات و ما تبخل بنورها على أحد و تقبل المحال ذلك النور على قدر استعدادها و كل محل يضيف الأثر إلى الشمس و يغفل عن استعداده فالشخص المبرود يلتذ بحرارتها و الجسم المحرور يتألم بحرارتها و النور من حيث ذاته واحد و كل واحد من الشخصين يتألم بما به يتنعم صاحبه فلو كان ذلك للنور وحده لأعطى حقيقة واحدة و كذلك أعطى ما في قوته غير أنه للقابل حكم في ذلك و لا بد فإن النتيجة لا تكون إلا عن مقدمتين فيسود وجه القصار الذي يبيض الثوب فإن استعداد الثوب تعطي الشمس فيه التبيض و وجه القصار تعطي الشمس فيه السواد و كذلك النفخة الواحدة من النافخ و هي الهواء تطفئ السراج و تشعل النار الذي في الحشيش و الهواء في نفسه واحد فترد الآية من كتاب اللّٰه واحدة العين على الأسماع فسامع يفهم منها أمرا واحد أو سامع آخر لا يفهم منها ذلك الأمر و يفهم منها أمرا آخر و آخر يفهم منها أمورا كثيرة و لهذا يستشهد كل واحد من الناظرين فيها بها لاختلاف استعداد الأفهام و هكذا في التجليات الإلهية فالمتجلي من حيث هو في نفسه واحد العين و اختلفت التجليات أعني صورها بحسب استعدادات المتجلي لهم و كذلك في العطايا الإلهية سواء فإذا فهمت هذا علمت إن عطاء اللّٰه ليس بممنوع إلا أنك تحب أن يعطيك ما لا يقبله استعدادك و تنسب المنع إليه فيما طلبته منه و لم تجعل بالك إلى الاستعداد فقد يستعد الشخص للسؤال و ما عنده استعداد لقبول ما سأل فيه فلو أعطيه بدلا من المنع و يقول ﴿إِنَّ اللّٰهَ عَلىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ﴾ [البقرة:20] و يصدق في ذلك و لكنك تغفل عن ترتيب الحكمة الإلهية في العالم و ما تعطيه حقائق الأشياء و الكل من عند اللّٰه فمنعه عطاء و عطاؤه منع و لكن بقي لك أن تعلم لكذا و من كذا

[الفرق بين الإلهام و علم الإلهام و العلم اللدني]



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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