الفتوحات المكية

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الصفحة - من السفر
(وفق مخطوطة قونية)

و يبين ذلك عند نزول عيسى عليه السّلام و حكمه فينا بالقرآن فصحت له السيادة في الدنيا بكل وجه و معنى ثم أثبت السيادة له على سائر الناس يوم القيامة بفتحه باب الشفاعة و لا يكون ذلك لنبي يوم القيامة إلا له صلى اللّٰه عليه و سلم فقد شفع صلى اللّٰه عليه و سلم في الرسل و الأنبياء أن تشفع نعم و في الملائكة فاذن اللّٰه تعالى عند شفاعته في ذلك لجميع من له شفاعة من ملك و رسول و نبي و مؤمن أن يشفع فهو صلى اللّٰه عليه و سلم أول شافع بإذن اللّٰه و ارحم الراحمين آخر شافع يوم القيامة فيشفع الرحيم عند المنتقم أن يخرج من النار من لم يعمل خيرا قط فيخرجهم المنعم المتفضل و أي شرف أعظم من دائرة تدار يكون آخرها أرحم الراحمين و آخر الدائرة متصل بأولها فأي شرف أعظم من شرف محمد صلى اللّٰه عليه و سلم حيث كان ابتداء هذه الدائرة حيث اتصل بها آخرها لكما لها فبه سبحانه ابتدأت الأشياء و به كملت و ما أعظم شرف المؤمن حيث تلت شفاعته بشفاعة أرحم الراحمين فالمؤمن بين اللّٰه و بين الأنبياء فإن العلم في حق المخلوق و إن كان له الشرف التام الذي لا تجهل مكانته و لكن لا يعطي السعادة في القرب الإلهي إلا بالإيمان فنور الايمان في المخلوق أشرف من نور العلم الذي لا إيمان معه فإذا كان الايمان يحصل عنه العلم فنور ذلك العلم المولد من نور الايمان أعلى و به يمتاز على المؤمن الذي ليس بعالم فيرفع اللّٰه الذين أوتوا العلم من المؤمنين درجات على المؤمنين الذين لم يؤتوا العلم و يزيد العلم بالله «فإن رسول اللّٰه صلى اللّٰه عليه و سلم يقول لأصحابه أنتم أعلم بمصالح دنياكم»

[الامتيازات المحمدية من وحي أمر السماوات السبع]

فلا فلك أوسع من فلك محمد صلى اللّٰه عليه و سلم فإن له الإحاطة و هي لمن خصه اللّٰه بها من أمته بحكم التبعية فلنا الإحاطة بسائر الأمم و لذلك كنا شهداء على الناس فأعطاه اللّٰه من وحي أمر السموات ما لم يعط غيره في طالع مولده فمن الأمر المخصوص بالسماء الأولى من هناك لم يبدل حرف من القرآن و لا كلمة و لو ألقى الشيطان في تلاوته ما ليس منها بنقص أو زيادة لنسخ اللّٰه ذلك و هذا عصمة و من ذلك الثبات ما نسخت شريعته بغيرها بل ثبتت محفوظة و استقرت بكل عين ملحوظة و لذلك تستشهد بها كل طائفة و من الأمر المخصوص بالسماء الثانية من هناك أيضا خص بعلم الأولين و الآخرين و التؤدة و الرحمة و الرفق ﴿وَ كٰانَ بِالْمُؤْمِنِينَ رَحِيماً﴾ [الأحزاب:43] و ما أظهر في وقت غلظة على أحد إلا عن أمر إلهي حين قيل له



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  الفتوحات المكية للشيخ الأكبر محي الدين ابن العربي

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