الفتوحات المكية

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و قال ﴿وَ لِيَتَذَكَّرَ أُولُوا الْأَلْبٰابِ﴾ [ص:29] كما قال أيضا ﴿وَ لٰكِنْ تَعْمَى الْقُلُوبُ الَّتِي فِي الصُّدُورِ﴾ [الحج:46] و في باب الإشارة عن الحق فيريد بالصلاح و الفساد إذا أراد المضغة ما يطرأ في البدن من المرض و الصحة و الموت فإن القلب الذي هو هذه المضغة هو محل الروح الحيواني و منه ينتشر الروح الحيواني في جميع ما يحس من الجسد و ما ينمي و هو البخار الخارج من تجويف القلب الذي يعطيه الدم الذي أعطاه الكبد فإذا كان الدم صالحا كان البخار مثله فصلح الجسد و بالعكس فهو تنبيه من الشارع لنا بما هو الأمر عليه

[الجسم الطبيعي العنصري و اللطيفة الإنسانية]

فإن العلم بما هو الأمر عليه في هذا الجسم الطبيعي العنصري الذي هو آلة للطبقة الإنسان المكلفة في إظهار ما كلفه الشارع إظهاره من الطاعات التي تختص بالجوارح فإذا لم يتحفظ الإنسان في غذائه و لم ينظر في صلاح مزاجه و روحه الحيواني المدبر لطبيعة بدنه اعتلت القوي و ضعفت و فسد الخيال و التصور من الأبخرة الفاسدة الخارجة من القلب و ضعف الفكر و قل الحفظ و تعطل العقل بفساد الآلات التي بها يدرك الأمور فإن الملك إنما هو بوزعته و رعاياه و كذلك الأمر أيضا إن صلح فاعتبر الشارع الأصل المفسد إذا فسد لهذه الآلات و المصلح لهذه الآلات إذا صلح إذ لا طاقة للإنسان على ما كلفه ربه إلا بصلاح هذه الآلات و استقامتها و سلامتها من الأمور المفسدة لها و لا يكون ذلك إلا من القلب فهذا من جوامع الكلم الذي أوتيه صلى اللّٰه عليه و سلم فلو أراد بالقلب العقل هنا ما جمع من الفوائد ما جمع بإرادته القلب الذي يحوي عليه الصدر و لهذا جاء باسم المضغة و البضغة لرفع الشك حتى لا يتخيل خلاف ذلك و لا يحمله السامع على العقل و كذلك قال اللّٰه ﴿وَ لٰكِنْ تَعْمَى الْقُلُوبُ الَّتِي فِي الصُّدُورِ﴾ [الحج:46] فإذا فسدت و عميت عن إدراك ما ينبغي فإن فساد عين البصيرة فيما يعطيه البصر إنما هو من فساد البصر و فساد البصر إنما هو من فساد محله و فساد محله إنما هو من فساد روحه الحيواني الذي محله القلب



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